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Tree the “God”

Tree God : गाँववाले बोले, “बात तो तुम्हारी सही है पर समस्या तो यह है कि सूखी लकड़ियों, आयेंगी कहाँ से?” “एक तो पहले से ही जंगल में पेड़ बहुत कम हैं और जो हैं भी, वो हरे हैं। पता नहीं सूखी लकड़ियाँ मिलेंगी कहाँ?”


बुजुर्ग एक गहरी साँस लेकर बोला,
“हाँ भाईऽऽऽ! अब तो जंगल की ओर से भी जाना ही नहीं होता। पहले तो पेड़ से पत्ते लेने जंगल में जाना-आना हो जाता था, पर अब जब से वह पेड़ tree सूखा है…”

कहते-कहते अचानक बुजुर्ग जैसे विठक कर रूक गया। बुजुर्ग क्या, सारे गाँववालों के कान जैसे दो शब्दों में अटक कर रह गये… “पेड़ सूखा” ।
गाँववालों की आँखों में जैसे बिजली सी चमक गई।


उस दिन गाँववालों ने फिर से एक बार आरती का थाल, रोली-कलावा और पानी की बाल्टियाँ तैयार कीं और चल पड़े अपने ‘वृक्ष देवता?’ के पास…


…जाड़े खत्म हो चुके हैं। गाँववाले स्वस्थ और मस्त हैं। कहते हैं जहाँ कभी वृक्ष-देवता हुआ करते थे, वहाँ सिर्फ एक गड्ढा भर रह गया है।


“वृक्ष-देवता तो न जाने कहाँ गायब हो गये हैं पर चरवाहा और गाँववाले, आज भी जंगल में घूमते देखे जाते हैं. शायद फिर किसी पेड़ को
‘वृक्ष-देवता’ बनाने की तलाश में..

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