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(Mata pita ki sewa se fayda) माता पिता की सेवा से क्या फायदा ? इस प्रश्न का उत्तर समझने से पहले जरा यह सोचना भी जरूरी होगा कि मां बाप ने जीवन भर संतानों की जो सेवा की; उसके पीछे उनकी क्या ‘फायदा’ पाने की इच्छा रही होगी?


सभी धर्म ग्रंथों में माता-पिता को, साक्षात देवी-देवता का स्थान दिया गया है। माता को प्रथम आध्यात्मिक गुरु और पिता को प्रथम सामाजिक गुरु माना जाता है। माता, जहां संतानों में संस्कारों की उत्पत्ति तथा पोषण करती है, वहीं पिता, संतानों को सामाजिकता के दायित्व का बोध कराता है।


माता के स्नेह को समझने के लिए एक छोटी सी कहानी सुन लें…
एक बार कहीं, एक माता अपने पुत्र के साथ रहती थी। दुर्भाग्यवश बच्चे के पिता बहुत ही छोटी उम्र में दिवंगत हो गए थे। ऐसे में माता ने घोर कष्ट और गरीबी के बीच अपने पुत्र की परवरिश की। वह खुद भूखी रहती पर अपने पुत्र को कभी भूखा ना सोने देती। दूसरों के घर चौका-बर्तन कर, उसने पुत्र को यथा-योग्य उच्च शिक्षा दिलाई।


शिक्षा के फल स्वरूप पुत्र को एक बहुत ही अच्छे वेतन वाली सम्माननीय नौकरी मिल गई।अब माता तथा पुत्र, सुख और आराम से रहने लगे।

उसी समय लड़के के जीवन में एक बहुत सुंदर लड़की ने प्रवेश किया। दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे। लड़का एक दिन, लड़की को अपनी मां से मिलाने घर ले गया।


लड़का अपनी मां को बहुत प्यार करता था और दिल से सम्मान करता था। लड़की ने यह बात महसूस कर ली। उसे ऐसा लगा कि कहीं ऐसा ना हो कि शादी के पश्चात लड़का अपनी मां के प्रति ही समर्पित रहे और मेरा ध्यान ना रखे। अतः उसने एक चाल चली।


उसने लड़के से मिलना जुलना बंद कर दिया। प्रेम में पागल लड़का उसके विरह को सह नहीं पाया और उसके पास जा पहुंचा और निरीह भाव से लड़की से विवाह की याचना करने लगा।
लड़की ने कहा कि “मैं एक ही शर्त पर तुम से विवाह कर सकती हूं; यदि तुम मुझे, जो मैं मांगूँ, वह चीज ला लकर देने का वादा करो, तभी यह विवाह संभव होगा।“

Mata pita ki sewa se fayda


लड़के ने व्यग्रता के साथ उसकी इच्छा पूरी करने की हामी भर दी और उससे पूछा “बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या लाऊं जिससे तुम मुझसे विवाह कर लो।

“लड़की कुटिलता पूर्वक मुस्कुरा कर बोली कि “यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना ही चाहते हो अपनी ‘मां का दिल’ निकाल कर मुझे भेंट करो।“


लड़का सन्न रह गया। वह बिना कुछ बोले अपने घर लौट गया।
वह घर तो आ गया पर उसका मन लड़की के आकर्षण में ही डूबा था।


फिर रात आ पहुंची। उस दिन अमावस्या थी अतः आसमान में चांद नहीं था। चारों ओर घुप्प अंधेरा छाया था। लड़के की मां निश्चिंत भाव से हुई थी। लड़के को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे??


एक ओर उसकी मां थी और एक ओर उसका प्यार!! बहुत देर सोच विचार और कशमकश के बाद लड़के ने एक फैसला किया। उसने अपना दिल कड़ाकर छुरा उठाया और मां के सीने में भोंक दिया।
कठोर हृदय के साथ उसने मां का दिल निकाला, अपनी हथेली में लिया और लड़की के घर की ओर भाग चला।


अंधेरी रात में उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। अचानक रास्ते में एक पत्थर से उसका पैर टकराया और वह जोर से मुंह के बल जमीन पर जा गिरा। अचानक मां के दिल से आवाज आई “मेरे बेटे तुझे कहीं चोट तो नहीं लगी???”


ऐसी है मां की ममता!!!


पिता का प्रेम भी मां के प्रेम से कहीं पर भी कम नहीं होता बस वह उसे प्रदर्शित नहीं कर पाता। पिता को पूरे समाज का सामना कर परिवार के लिए रोटी और सम्मान इकट्ठा करना होता है।

जिसके लिए उसे कठोर और बहादुर होना ही होता है।


पिता भी दिल से बहुत ही दयालु और भावुक होता है पर वह अपनी भावनाओं को प्रायः आंसुओं या वात्सल्य से प्रदर्शित नहीं कर पाता क्योंकि प्रचलित धारणा के अनुसार पुरुष को कठोर ही होना चाहिए। यदि माता और पिता दोनों ही कोमल स्वभाव के हो जाएं तो संतान की देखभाल व समाज से सुरक्षा बहुत कठिन हो जाएगी।


माता पिता अपने जीवन के हर सुख की आहुति, संतान की उन्नति के लिए खुशी-खुशी देते हैं और कभी उसके लिए एहसान भी नहीं प्रदर्शित करते। भला भगवान के अलावा ऐसा कौन होगा जो अपना सर्वस्व किसी पर न्योछावर कर दे और कभी प्रदर्शन भी ना करे??


इसलिए ऐसे मां बाप की सेवा, भगवान की सेवा से किसी भी रूप में कम नहीं होती।

जो संतान अपने मां बाप के आशीर्वाद के साथ जीवन के रणक्षेत्र में उतरती हैं, उनका साथ भगवान स्वयं देते हैं और जीवन में उनकी विजय प्रशस्त करते हैं। इसलिए माता पिता की सेवा व्यक्ति का “कर्म ही नहीं परम धर्म” भी है।

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