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100% safal life aur khushi :
12:55 मेरी नजर घड़ी पर पड़ी! मैंने देखा 1 बजने ही वाला था और मैं जानता था कि 1 बजते ही मिस्टर चड्ढा अपने कदम हॉल में रख देंगे। मेरी लाइफ में सफलताा और खुशी की पहलेेे से ही बैंड बजी हुई थी और अब डर था कि पता नहीं मिस्टर चड्ढा आज मीटिंग में क्या कहने वाले थे ।


मिस्टर चड्ढा हमारे टीम मैनेजर थे और समय पर पहुंचना उनका शगल था। टन्न…तभी घड़ी में आवाज आई और घड़ी ने 1:00 बजने की घोषणा की; और उसी के साथ मिस्टर चड्ढा ने अपना कदम आशा के अनुसार हॉल में रखा।


मिस्टर चड्ढा का चेहरा हमेशा सपाट ही रहता था। बात खुशी की हो या दुख की, उनके चेहरे पर शायद ही कभी कोई भाव उभरता था।


शान्ति और आराम से सबकी ओर देखते हुए वह अपनी सीट पर बैठ गए। कुछ देर की औपचारिक बातचीत के पश्चात अचानक उन्होंने सबको ऐसे देखा जैसे कसाई बकरे को हलाल करने से पहले देखता है।


गंभीर स्वर में मिस्टर चड्ढा बोले, “दोस्तों आप जानते ही हैं कि कोरोना भारत में आ पहुंचा है। कंपनी की स्थिति आप से छुपी नहीं है। कंपनी ने यह फैसला किया है कि अपने साथियों की संख्या में कुछ कमी की जाए।“

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“कौन लोग हमारे साथ नहीं होंगे जल्दी ही यह सूचना नोटिस बोर्ड पर लगा दी जाएगी। पर आप में से किसी को भी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि कंपनी, कुछ ही समय बाद आप सब को वापस बुला लेगी।“ उन्हें उन्होंने जैसे “पुचकारते” हुए कहा।


ऐसा लगा जैसे सिर पर किसी ने बम फोड़ दिया हो!!


उसके बाद मिस्टर चड्ढा ने क्या कहा मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दिया मुझे तो चारों ओर बस निराशा के बादल ही नजर आ रहे थे। कुछ देर बाद मेरे साथी ने मुझे झकझोरा और बताया कि मीटिंग खत्म हो चुकी थी। मैं चुपचाप भारी मन से उठा और अपनी सीट पर पहुंच गया। ऑफिस का समय कब खत्म हो गया मुझे पता ही नहीं चला।


आज मेरा ऑफिस से घर जाने का मन ही नहीं था। पत्नी भी बच्चों के साथ कुछ समय के लिए अपने घर गयी हुई थी। मैं चुपचाप टहलते टहलते अपने ख्यालों में गुम, पास में ही एक पार्क में पहुंच गया। इस पार्क में मैं पहले भी आता रहा था पर इस तरह उदास मन से शायद पहले यहाँ कभी नहीं आया था।


पार्क की बेंच पर बैठे बैठे न जाने कितनी देर हो गई थी मुझे नहीं पता कि तभी किसी ने मुझे हौले से टोका; “बाबू जी राम राम! सब ठीक-ठाक तो है? आज आप काफी उदास लग रहे हैं।“


मेरे सामने एक बुजुर्ग या यूं कहिए कि एक वृद्ध खड़े थे इस बुजुर्ग इंसान को मैं पहले भी कई बार देख चुका था। अक्सर पौधों के नीचे पड़ी पत्तियों को समेटता रहता, क्यारियों की सफाई करता, कोई पेड़ यदि मुरझाया दिखता तो उसे पानी पिला देता, कोई बच्चा यदि पार्क में उदास या अकेला बैठा दिखता तो उसके पास जाकर मुस्कुराता और उसे नन्ही नन्ही कहानियां सुनाकर खुश करता रहता।


मैंने उसे कभी भी उदास या दुखी नहीं देखा, बल्कि सब की सेवा करते और सब को खुश करते ही देखा था। वह शायद इस बात का माली था। लोग अक्सर उसे “मलंग बाबा” कह कर पुकारते थे। एक माली को खुद को टोकते देख, कहीं ना कहीं मेरा झूठा अहंकार जाग उठा। भला एक माली की क्या मजाल कि एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर को टोके? आखिरी यह अनपढ़ गंवार इन बातों को समझेगा ही क्या?


“बाबू जी आज आप इतने परेशान क्यों है?” मलंग बाबा ने एक बार फिर से पूछा।
“अरे कुछ नहीं बाबा, जाओ अपना काम करो; सब ठीक है” मैंने कहा।


“बाबू जी क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूं?” मलंग बाबा जैसे मेरी परेशानी को जानने के लिए पीछे ही पड़ गए। एक तो ऑफिस का तनाव, ऊपर से मलंग बाबा की टोका-टाकी, मैं ना चाहते हुए भी बुरी तरह झल्ला उठा और अपनी ‘स्वाभाविक भाषा’ में बोला “Are you mad?” “तुम्हें समझ में नहीं आता कोई आदमी अकेला परेशान बैठा है तो उसको डिस्टर्ब नहीं किया करते।“


बाबा पहले की तरह ही मुस्कुराते रहे उन पर मेरी झल्लाहट का कोई फर्क नहीं पड़ा। उनकी मुस्कुराहट देखकर मेरा पारा जैसे आसमान पर चढ़ गया।

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“तुम्हें पता है पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैला है और मेरी नौकरी जाने वाली है। जरा सोचो अगर कोरोना ऑफिस में फैल गया और मेरी जॉब चली गई और कुछ महीने तक कोरोना का कोई हल नहीं निकला तो 5-6 महीनों बाद, मेरा और मेरे परिवार का होगा क्या? तुम्हें भला यह बातें क्या समझ में ?’ मैंने लगभग धिक्कारते हुए बाबा से कहा।

तभी आसमान में बादल की गड़गड़ाहट सुनाई दी। कहीं दूर आसमान पर थोड़े से काले बादल मानो आपस में झगड़ा कर रहे थे। बाबा ने एक और उन बादलों की ओर देखा और बच्चे की तरह मुस्कुराए। उन्होंने अपनी कुर्ते की जेब में हाथ डाला और एक विजिटिंग कार्ड निकाल कर मेरी और बढ़ा दिया। “बाबूजी यह एक अस्पताल का कार्ड है जो शहर में बुखार के इलाज के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।“


मैंने सकपकाते हुए बाबा से कहा, “क्या तुम पागल हो? मुझे भला इस अस्पताल के विजिटिंग कार्ड का क्या काम?”


अब बाबा थोड़ा गंभीरता से मुस्कुराए और हौले से बोले “देखो बाबू जी अब बादल आ रहे हैं; हो सकता है बादल ज्यादा मात्रा में आ जाएं; हो सकता है बारिश शुरू हो जाए: हो सकता है कि आप घर जाते वक्त बारिश में भीग जाएं; हो सकता है बारिश में भीग कर आपको बुखार हो जाए;

और हो सकता है आपका फैमिली डॉक्टर उसका इलाज ना कर पाए; और आपको बेहतर इलाज की ज़रूरत पड़े, इसलिए मैंने आपको इस शानदार अस्पताल का विजिटिंग कार्ड दिया है।“

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मुझे लगा हो ना हो यह बुड्ढा निश्चित रूप से पागल है। मैंने किलसते हुए उससे कहा कि “ चार बादल आए नहीं और तुमने अस्पताल तक की सोच बना डाली?”


बाबा ने यथावत मुस्कुराते हुए कहा, “बाबू क्या आप भी यही नहीं कर रहे हैं? अभी कोरोना ने दस्तक ही दी है और आपने अभी से मान लिया कि कोरोना आपके ऑफिस में भी आ जाएगा;

आपको जॉब से निकाल दिया जाएगा; आपको कहीं और जॉब नहीं मिलेगी और पांच छह महीने बाद आपके परिवार का हाल खराब होगा! भगवान नाम की भी कोई चीज है दुनिया में!

क्या हम सभी चीजों के बारे में पहले से अनुमान लगा सकते हैं जो चीज हमारे सामने सिर्फ़ आई है, हम इसके विषय में कुछ ठीक से जानते तक नहीं; केवल उसके अनुमान मात्र से ही डरते रहना क्या उचित है?”


मेरी खोपड़ी झन्ना गई। इतनी गहरी बात, कोई सामान्य या पागल इंसान तो बोल ही नहीं सकता था। आखिर यह व्यक्ति है कौन?? मेरे मन में अब उसको लेकर उत्सुकता जाग उठी!!

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अभी मेरा दिमाग कुछ ठिकाने आया भी नहीं था कि बाबा आगे बोले “I am just not mad, just my perspective towards life is different. I take life on ‘as it is’ basis. No regrets for past and no big expectations from future. I like to live in present only and present is very nice and full of joy and happiness.”


पागलों की तरह मुंह खोले, मैं बाबा की तरफ देखे जा रहा था। इतनी फर्राटेदार इंग्लिश, इतनी गहरी बातें; आखिर यह माजरा क्या है?


हकलाते हुए मैंने बाबा से कहा “बाबा इतनी फर्राटेदार इंग्लिश, दार्शनिकता से भरी इतनी गहरी बातें; और आप यहां माली का काम करते हैं?”


बाबा के लिए मुंह से निकलने वाला “तुम”, पता नहीं कब अपनेआप, “आप” में बदल चुका था।
बाबा धीरे से मेरे पास आकर बैठ गए। बाबा ने गहरी सांस लेकर कहा, “बाबूजी मैं माली नहीं हूं हां बस दुनिया की बगिया को खुशी और समृद्धि से महकता देखना अवश्य चाहता हूं। जो सबक मैंने जीवन से सीखे वही सबक दुनिया में बांटना, यही मेरे जीवन का उद्देश्य है।“


“IIT Electronics से, विशेष योग्यता के साथ पास होकर, मैंने लगभग 25 वर्ष, देश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थानों के साथ कार्य किया है।“


“तो फिर बाबा आपको तो अच्छी खासी पेंशन मिलती होगी फिर आप यह छोटा सा काम क्यों करते हैं?”


“हां बाबू जी, ईश्वर की दया से जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं”, इससे पहले कि बाबा आगे बोलते अंदर से लगभग द्रवित होते हुए मैं बोला “बाबा प्लीज् आप मुझे बाबूजी ना कहें। मेरा नाम रोहन है। आप मुझे रोहन ही कह कर बुलाएं।“


“जैसी तुम्हारी इच्छा रोहन!”’ बाबा पहले ही जैसी मगन मुद्रा में बैठे, आगे बोले, “मेरे दो बेटे हैं और दोनों ही इंजीनियर बन विदेश में सेटल हैं। घर में मेरी पत्नी और मैं रहते हैं हम दोनों के लिए ही आवश्यकता से अधिक साधन, भगवान ने जुटा रखे हैं।“

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“तो फिर यह सब क्या है?” मैं अपनी उत्सुकता किसी भी प्रकार से छुपा नहीं पा रहा था।


बाबा के चेहरे पर एक रहस्यमई मुस्कान तैर गई। गंभीर स्वर में उन्होंने कहा कि ‘रोहन क्या तुम मेरे इस परिवर्तन के कारण को जानना चाहोगे?”

” क्याााा तु मेरे साथ एक ऐसे सफर पर चलना चाहोगे जो हंड्रेड परसेंट सफल जीवन और खुशी से भरपूर है। “


मैं तो जैसे इस बात का इंतजार ही कर रहा था। “जरूर बाबा” मैंने कहा। तो सुनो….

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